shanti hindi : शांति की परिभाषा क्या है? शांति का अर्थ और परिभाषा
उतर: Shanti hindi words : 'शांती' (shanti ) का शब्दकोशीय अर्थ है अमन, मौन, खमोशी. आशांति या व्यकुलता, बेचनी, हळचल का आभाव। मणुष्य शंति (shanti ) चहत है। शान्ती मनुष्या के ली ए हितकर है तथा आशांति अहितकर। आशांत मनोदशा में या अंशत वतावरण में मनुष्या सुखपुरवक नहिं रह सकटा। शंति (shanti ) सुखदायक है और आशांति दुःखवर्द्धक । अत: षांति वह मूल्य है जो हितकर, सुखवर्द्धक तथा दू: खनिवारक है। आशांति मणुष्य में तणव तथा व्यकुळता उत्पन्न करति है। तणव से की बीमारिअँ होति हें–हैबलड प्रेशर, दयबितिज, हारत अटाक, ब्रेण हैमरेज आदि तणव के दुश्परिणम हें। शंति स्वस्त्यवर्द्धक है तथा आशांति स्वस्त्यनाशक । जैं दर्शं शंतिवादि है–जिओं और जें दो में आस्था रक्ता है। बौध दरशन के अष्टांगिक दरशन के सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक विवा, सम्यक समधी आदि भी शंति (shanti ) का संदेश देते हैं। रवीनद्रनाथ तेगोर प्रकृतिवदी थे तथा वन–प्रान्त में स्थित उन्नका शंति (shanti ) निकेतन कोलाहल से दुर शंति का स्तल था। पां. नेहरू का पंचशील का सिद्धान्त् अन्तर्राष्ट्रीय शंति का परिचायक था।
इस प्रकार शंति (shanti ) के दो प्रेमुख भेड हो जते हं। आतम शंति (shanti ) आरथात मन की (shanti ) शंति । बाह्या शंति (shanti ) आरथात पैरीवारिक शंति, सामाजिक शंति, (shanti ) देष की शंति (shanti ) तथा अंतर्राष्ट्रीय शंति
आतम शंति– आतम शंति (shanti ) से तातपर्य मन में संतोष व सुख का अनुभाव करने से है। किसि को आतम शंति पृर्थना से, अवधान केन्द्रीकरन से, ईशभक्ति से, धरमिक प्रवचन सुन्ने से मिलति है। किसि को संगित से शंति (shanti ) का अनुभाव होत है। कोइ आपणी रुचि (होबी) में शन्ति (shanti ) खोजता है जैसे बागवानी का शौक राखने वालों को बागवानी में, प्राकृतिक का शौक राखने वालों को सुंदर प्राकृतिक दॄश्योँ में आतम शन्ति का अनुभाव होटा है। किसि को स्वाध्याय (पुष्टके पढने) में शंति व सुख मिलटा है । कोइ एकांत में आतम शंति खोजता है।
जिन स्थितियों से तणव उत्पन्न होटा है उणसे आशांति मिलति है । आधुनीक शोधों से ज्यात होत है कि लगभग पछत्तर प्रतिशत रोगोन् का कर्ण तनाव होत है। तणव से तातपर्य उस आंतरिक स्थिति से है जो जीवन की अवनचित, नकारातमक धरणाओं, दुरघटनाओं से उत्पन्न है। कबि–कभी स्विकारतमक घटणाएँ भी चिंता बधा देति हं और तानाव हो जटा है सैसे उच्च कुळ में विवाह होने से, बडे पड पर पडौनति से जिममेदारि बधाने से, बहुत बडा पुरसकार पाने से इत्यादि । तणव से शंति के आभाव की स्थिटि ज्ञत होति है।
आशांति से पीडा व ष्ट, कथिनै का बोध होटा है । शंति से सुख उप्पन्न होटा है । परिहास, विनोद वृत्ति से तनाव को कम कर शंति पै जा सकति है।
बहय शंति– जीवण के प्रट्येक क्षेत्र में शंति आवश्यक है । बाह्या शंति पैरिवारिक भी होति है। तूते हुआ परिवर, वे परिवर जिनमे मुखिया का निधान हो गया हो, जो करज में हो, वे परिवर जिनकी आर्थिक स्थिति दयनिय हो– आशांति के शिकार होते हैं। पैरीवारिक सदस्यां में परस्पार ऋष्य भाव, आशांति को जन्म देता है । सामजिक शान्ति से तातपर्य समज में सुखद व्यवस्थ तथा आपराधोँ से मुक्ति से है । लोग सहयोग से आंनदपुरवक जीवण व्यतित कर रह हो और संघर्ष तणव की कोइ स्थिति न हो तो े समज शंतिमय समज कह जागा। इसि प्रकार किसि देष में कोइ बह्य अक्रमन न हो, आंतरिक विरोध के स्वार न हों, संप्रदायिक धर्मिक सदभावना हो, आटंकवाद, नक्सलवाद, भाशावाद, प्रान्तवाद जायसी अवंचित स्थिति न हो। लोगों को परयाप्त रोजगार के अवसर हों लोग खुशाहाल जिन्दगी व्यतित करटे हों तो ेसे स्थितियँ देश या राष्ट्र्र की शाति की ओर संकेत करति हैं। अंतृष्ट्रीय षांति से आश्य है किन्हि भी राशत्रों में परस्पर युद्ध या शितयुद्ध जैसे हलात न होना, अंतृष्ट्री आतंकवाद, आपराध, तस्करी न होना आदि से है। अंतृष्ट्रीय आशांति यूद्ध तथा आंविक असत्रों के उपयोग का भाय उत्पन्न करति है। अंतृष्ट्रीय शंति सुव्यवस्थ तथा सुप्रबंदन की ओर संकेत करति है।
स्वयं में शंति स्थापित करणे के उपाय– शोध यः प्रमन्नित कर चुके हैं कि ७५% बीमारियों का का कर्ण तेंषण या तणाव है। हृदयाघात, मस्तिष्काघात, भगनाशा, अवसाद (दीप्रेषण), दैबतीज या मधुमेह आदि बिमारियॉं तनाव व आशांति का परिनाम है। तणव से सिरददे पेत के विकर, आणद्रा, क्रोध, आक्रमकटा, आतमहत्या आपराध आदि को भी बधावा मिलटा है । अतः स्वयं में शान्ति स्थपित करणा अत्यन्त आवश्यक है।
स्वयं में शंति स्थापित करणे हेतु निम्न्लिखित प्रायस कीए जा सकटे हं–
(१) ध्यान या अवधान– मन की शांति (shanti ) के लि ए ध्यान के नदृकरन भरत को योगियों का पूर्णा उपाय है। प्रथम अवस्थ में ठोड़ा एकांत में बैठकर ध्यान लगाने का (एकग्रता के साथ) आभ्यास करणा होटा है फिर जब ठीके–थीक आभ्यास हो जाई तो कीं भी ध्याण लग सकटा है । ध्यान से तानाव से मुक्ति मिलति है, आशांति दुर होति है तथा शांति का सुखद अहसास होत है। योगभ्यास से भी शंति मिलति है।।
(२) प्राकृति दर्शण– हरियलि, प्राकृतिक दृष्य, मंूष्य को शंति (shanti ) देते हें । कोलाहल या प्रदूषण से दुर शंत मनोरम प्रकृतिक का सौंदर्या मन में सुख व शांति (shanti ) उत्पन्न करते हैं।
(३) स्वाध्याय– अचछे सहित्या का पाथन ज्ञानवृद्धि व मनोरंजन के साथ अथ आत्मा में शांति भर देत है । गान्धी ने एक स्तल पर लीखा है, "जब माझें शंकाएं घेरती हैं, नीराशाएं मेरा सामना करती हैं करती हैं और माझें ज्योति की किरन दृष्टिगोचर नहीं होंगी, उस् साम्या मैं गीता की ओर ध्यान देता हूं । इस्मेँ कोइ न कोइ श्लोक मुझें शान्तीदायक अवश्य मिल जटा है और मैं शोकाकुल अवस्थ में तुरंत मुस्काराने लगटा हू।"
(४) संगित– शोढों के ये परिनाम साम्ने ऐ हें कि संगित ओरजा, रचनात्मक्ता, एकाग्रता बद्धाने के साथ साथ–साथ चित्त को शांत करता है । संगित से दिमाग को रहत मिलति है। वाद्ययंत्रों का सुमधुर संगीति (इंसत्रूमेन्टल मयूजिक) शंतिदायक है।
(५) प्रार्थना– करयारंभ के सम्य प्रर्थना शान्तिपुरवक करम में संलग्न होने की प्रेरना देति है–यः आवश्यक नहिं की धरमिक या ईश प्रार्थना ही हो, ⁇ सि प्रार्थना जो आतम बल दे भी शंतिदायक है–जैसे ⁇ सि श्क्ति हमें देना दाता, मन का विषवास कामजोर होना! या ह्म होंगे काम्याब–२ एक दिन या हे प्रभो आनंददाता ज्ञाण हमको दीजी, लीजी आपणी शरण में ह्म सदाचारी बने । शबदहीन प्रर्थना भी शंति (shanti ) देति है।
(६) लोककल्याण कार्य– परोपकार के कार्या, दुसरोँ की चोती–मोती सहयता, जायसे आँधे को रस्ता पार कराना, निरक्षर को पढाणा आदि कार्या सुख देते हैं ईनसे आतम संतोष व आतम शांति मिलति है।
(७) दैयित्व निर्वाह– आपका कोई भी कार्या या व्यवसय हो या आप नौकरी करते हों। यदी आपणे दैयित्व को समुचित् प्रकार से निर्वाह करते हैं तो आतम सुख व आतम शांति की अनुभूती होति है।
(८) हास परिहास व विणोद्वृत्ति– निरशा के बोझिल क्शनोँ मे वयं व्यक्ती की विणोद करणे की आदत तथा चुटकुले सुणाने, गणा गाने, मिमिक्री करणे, दायलोग सुणाने की आदत आशांति के बटकर शान्ति प्रदान करति है।
(९) अभिरुचि के कार्य– आपनि होबी या अभिरुचि के कार्या में व्यसत रहना यथा बाग बगिचा बनाणा, भजन गाना, चित्रा बनाणा, क्विता लिखणा, घुमाना, लोगोन से मिलणा, बातेन करणा, आदि विविध प्रकार के अभिरुचि के कार्या मन को शान्ति पाहुंचाते हैं।
(१०) Shanti hindi lyrics सकरात्मक सोच– मन में आने वाले नकारात्मक विचार दुखदयक होते हैं। बर भवना, ऋष्य, क्रोध आदि से आशांति व तणव ही होत है। सत्कर्य व सदगुन आपमे सकरात्मक सोच तथा शंति (shanti ) की भवना भर देते हें। तणव (तंशन) के करयों से बचना चाहीए ।
गतिविधि क्रमांक १६– कर्मशाला या साभाकक्ष में दरी पर बैथकर छात्राद्यपकोन को योग का आभ्यास तथा ध्याण केन्द्रीकरन का अभयास करया जा।