raebarli ki news : रामानंदाचार्य श्री श्री 108 रामस्वरूपाचार्य जी महाराज कामदपीठाधीश्वर चित्रकूट मध्य प्रदेश विश्राम दिवस
रायबरेली। मानस संत सम्मेलन के तृतीय दिवस पर जगद्गुय श्री रामानंदाचार्य श्री श्री 108 रामस्वरूपाचार्य जी महाराज कामदपीठाधीश्वर चित्रकूट मध्य प्रदेश विश्राम दिवस के अवसर पर नारी महिमा पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। श्री जगद्गुरू ने अपने वक्तव्य में कहा कि मनुष्य के अन्दर सनातन सोच आवश्यक है। पश्चिम सभ्यता पर बोलते हुए स्वामी जी ने कहा कि एक लड़का विद्वान होकर घर आया और जब चर्चा हुई तो उसने अपने को अपने पिता से श्रेष्ठ बताया। उसने कहा कि आपने तो मुझे सिर्फ जन्म दिया है बाकी सब हमारी मेहनत व प्रतिभा का फल है। सनातनी सोच में पिता केवल जन्म ही नहीं देता है बल्कि उसके जीवन को संवारने और श्रेष्ठ बनाने में भरपूर योगदान करता है। जगद्गुरू ने कहा कि जीवन को यदि आप मिठासों से भरना चाहते है तो अपनी बुद्धि को अयोध्या में मन को मिथिला से और चित को चित्रकूट से जोड़े। अहंकार मिट जायेगा आपके भाग्य के सभी दरवाजे खुल जायेंगे जीवन में मिठास भर जायेगा। जगद्गुरू ने कहा कि हर व्यक्ति को बरासन तो मिल जाता है। परन्तु कुश-आसन और सिंघासन नहीं मिलता है। परन्तु मर्यादा पुरूषोत्म भगवान राम को यह तीनो आसन प्राप्त हुआ। राम सिंघासन के दौर में कभी नहीं थे। जब उन्हें 14 वर्षो का बनवास मिला तो उन्होने अयोध्या के राज्य की समस्त जिम्मेदारी अपने अनुज भरत को सौंप दिया था। नारी की महिमा पर जगद्गुरू ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सीता के चरित्र, कौशल्या का चरित्र और सुनैना का चरित्र से महिलाओं को सीख लेना चाहिए। माता सीता ज्योही भगवान राम को वन जाने का आदेश हुआ कोई विवाद नहीं वे साथ में जाने हेतु तैयार हो गयी। वर्तमान समय में जमीन, धन, मकान इन सबो के लिए भाई-भाई और माता-पिता से भी झगड़े होते है। परन्तु राम व सीता सहर्ष वन जाने हेतु तैया हो गये साथ में अनुज लक्ष्मण भी तैयार हो गये। जगत गुरू ने कहा कि नारी चाहे तो पति मा मार्ग सही हो जाता है। पति यदि भ्रष्टाचार में लिप्त है तो पत्नी उस भ्रष्ट आचरण से आया हुआ धन का उपयोग न करे तो भ्रष्टाचार स्वयं ही छोड़ देगा।
जगद्गुरू ने कहाकि यदि गुरू, माता, पिता अच्छी शिक्षा न तो तो भी आप शिक्षा प्राप्त कर सकते है। उनके गुणों को अपनाकर उदाहरण के तौर पर उन्होने एकलव्य और द्रोणाचार्य के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से बताया। उन्होने कहा कि द्रोणाचार्य एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने को तैयार नहीं हुए तो मिट्टी से द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर एकलव्य ने धनुर्विद्या सीखने का प्रयास किया और उसमे सफल रहा। नारी की महिमा पर जगद्गुरू ने माता अनुसूईया की महिमा का बखान करते हुए कहा कि अपने तप बल ब्रम्हा, विष्णु, महेश को 6 माह का बालक बनाकर पालने में झुलाया। कौशल्या के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि महाराजा दशनथ के निधन के बाद राम लक्ष्मण वन में थे। भरत अपने ननिहाल में था तो संस्कार कैसे हो 14 दिनों के बाद भरत के आने पर महाराजा का संस्कार हुआ। इस बीच अयोध्या को कौशल्या ने ही तो संभाला। जगद्गुरू ने कहा कि आप सोने चक्कर में पड़े नहीं तो जीवन अस्त व्यस्त हो जायेगा। सिंदूर के सम्बन्ध में जगद्गुरू ने कहा कि सिंदूर लगाना सनातन महिलाओं के लिए संस्कार है जबकि पश्चिम में विवाह संस्कार नहीं होता है बल्कि एक समझौता होता है।
पादुका पूजन यज्ञाचार्य नरेश शास्त्री द्वारा कराया गया। जबकि मुख्य यजमान यश श्रीवास्तव एवं श्रीमती श्वेता श्रीवास्तव, डा0 नीरज श्रीवास्तव एवं उनकी धर्मपत्नी डा0 सुनीता श्रीवास्तव रही। महाराज श्री का स्वागत एवं अभिनंदन करने के लिए पुष्पहार निवेदित करने के लिए समिति के अध्यक्ष स्वामी ज्योर्तिमयानंद जी, महामंत्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ला मंटू शुक्ला, राकेश तिवारी एडवोकेट, राघवेन्द्र द्विवेदी एडवोकेट, कोषाध्यक्ष उमेश सिकरिया, राकेश कक्कड़, गोपाल श्रीवास्तव, आशीष अवस्थी, महेन्द्र अग्रवाल, राधेश्याम लाल कर्ण आदि शामिल रहे।
इस अवसर पर दैनिक सृष्टि जागरण द्वारा मानस संत सम्मेलन के 44 वर्षो में जिन विभूतियो द्वारा मंच को गौरवान्वित किया गया। जितने अध्यक्ष व महामंत्री द्वारा कार्य किया गया उनसभी के नाम चित्र सहित प्रकाशित किया। यह सृष्टि जागरण का 14वें वर्ष का प्रथम अंक था जिसे जगद्गुरू श्री रामानंदाचार्य जी स्वामी रामस्वरूपाचार्य जी महाराज ने लोकार्पण किया। जगद्गुरू समाचार पत्र के अनवरत समाज सेवा के लिए काम करते रहने के लिए आशीर्वाद भी दिया।
इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर लाल गुप्ता, फिरोज गांधी कालेज के प्रबंध सचिव अतुल भागर्व, कमलेश पाण्डेय, राजेन्द्र अवस्थी, सहित हजारों की संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन अम्बिकेश त्रिपाठी प्रतापगढ़ ने किया।