Premchand Jayanti 2024: मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, जानें किसने दिया था उपन्यास सम्राट नाम
Munshi Premchand Stories and Essay in Hindi आज यानी 31 जुलाई 2024 को Munshi Premchand जी की जयंती है हिंदी और उर्दू के महानतम लेखन में शुमार Munshi premchand की रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर है उनकी जयंती के अवसर पर कई स्कूलों और कॉलेज में कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है ऐसे में हर एक व्यक्ति को मुंशी प्रेमचंद के जीवन के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है।
Munshi Premchand का जीवन परिचय
प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था और उनका जन्म 31 जुलाई 1888 को वाराणसी के नजदीक लमही गांव में हुआ था पिता का नाम अजायब राय था और वे डाकखाने में मामूली नौकरी करते थे वह जब सिर्फ 8 वर्ष के थे तब मां का निधन हो गया पिता ने दूसरा विवाह कर लिया लेकिन वह मां के प्यार और वात्सल्य से महरूम थे प्रेमचंद का जीवन बहुत अभाव में बीता।
प्रेमचंद के उपन्यासों में गोदाम सबसे ज्यादा मशहूर और विश्व साहित्य में भी उनका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है एक समान किसान को पूरे उपन्यास का नायक बनाना भारतीय उपन्यास परंपरा की दिशा बदल देने जैसा था गोदाम पढ़कर महसूस होता था कि किस का जीवन सिर्फ खेती से जुड़ा हुआ नहीं होता है उसमें शुद्ध खबर जैसे पुराने जमाने की संस्थाएं भी होती हैं नए जमाने की पुलिस अदालत जैसी संस्थाएं भी हैं यह सब मिलकर हरी की जान लेती है। हरी की अमृत पाठकों के सहन से जाग-जोड़ कर रख देती है गोदान का करुणाई अंत इस बात का गवाह है!
किसने दिया उपन्यास सम्राट नाम
साल 1925 में आए रंगभूम प्रेमचंद का सबसे बड़ा उपन्यास है इस उपन्यास में प्रेमचंद ने गांधी युग के अहिंसा आत्मक आदर्श का एक बड़ा प्रतीक किया इसके बाद 1932 में कर्मभूमि और फिर प्रेम श्रम और सेवा सदन में भी युवाओं के दिमाग में गहरी छाप छोड़ी प्रेमचंद की रचनाओं को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार संरक्षण ने उन्हें उपन्यास सम्राट की उपस्थिति दे दी उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं नीचे देख सकते हैं।
- कफन
- नमक का दरोगा
- ईदगाह
- ठाकुर का कुआं
- दो बैलों की कथा
- सूरदास की झोपड़ी
- पश की रात
- शतरंज के खिलाड़ी
- पंच परमेश्वर
- प्रयाश्रित
कि तब तक प्रेमचंद का आशीर्वाद से मोह भंग हो चुका था उनकी आखिरी दौर की कहानी में भी यह देखा जा सकता है जीवन के आखिरी दिनों में उपन्यास मंगलसूत्र लिखा जा रहे थे जिसे ही वह पूरा नहीं कर सके। लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 में उन्होंने आखिरी सांस से ली प्रेमचंद अपने उपन्यासों में भारतीय ग्रामीण जीवन को केंद्र में रखते थे प्रेमचंद की हिंदी उपन्यास को जिस ऊंचाई तक पहुंचा वह आने वाली वीडियो के उपन्यासकारों के लिए एक चुनौती बन गई प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियां भारत और दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है प्रेमचंद हिंदी साहित्य के एक मील का पत्थर और बने रहेंगे।