भागवत कथा का भव्य भंडारे के साथ हुआ समापन

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उन्नाव। ग्राम थाना में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के समापन अवसर पर हवन यज्ञ और भंडारे का आयोजन किया गया। श्रीमद् भागवत कथा का 7 वें दिन हवन यज्ञ व विशाल भंडारे के साथ समापन हो गया। इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने हवन कुंड में आहुति डाली और प्रसाद ग्रहण किया।

श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन सुबह पूजा-अर्चना के साथ हवन यज्ञ शुरू हुआ। इस दौरान यजमानों ने आहुतियां डाली। इसके बाद कलश विसर्जन शोभायात्रा निकाली गई। पवित्र कलशों के विर्सजन के बाद विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहले हवन यज्ञ में आहुति डाली और फिर प्रसाद ग्रहण कर पुण्य कमाया। भागवत कथा का आयोजन प्रमोद सिंह पवन अरविन्द सिंह प्रदीप सिंह चौहान की ओर से करवाया गया था।

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कथा व्यास भगवाताचार्य पं सुरेश चंद्र द्विवेदी जी महाराज ने 7 दिन तक चली कथा में भक्तों को श्रीमद भागवत कथा की महिमा बताई। उन्होंने लोगों से भक्ति मार्ग से जुड़ने और सत्कर्म करने को कहा। उन्होंने कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है।

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भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। कथावाचक ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है।

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मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है। कथा समापन के दिन विधिविधान से पूजा करवाई। दोपहर तक हवन और भंडारा कराया गया। इसमें यजमानो ने अपने परिवार के साथ आहुति डाली। आसपास से आए श्रद्धालुओं ने भी हवन में आहुति डाली। पूजन के बाद दोपहर को भंडारा लगाकर प्रसाद बांटा गया जो देर रात तक चलता रहा।

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