संतकबीरनगर लोकसभा सीट : नेताओं की हुंकार पर कहीं कार्यकर्ताओं की उदासीनता पड़ ना जाए भारी
संतकबीरनगर। संतकबीरनगर लोकसभा में तीनो प्रमुख दलों के प्रत्याशी घोषित होने के बाद भी आवाम और मतदाताओं के बीच चुनावी सरगर्मियां शून्य सी दिख रही हैं। सभी दलों के नेता भले ही हुंकार भरते दिख रहे हैं लेकिन जमीन पर पार्टियों के सपनो को साकार करने वाले कार्यकर्ताओं की उदासीनता के चलते चुनावी मुहिम जोर नही पकड़ पा रही है।
पिछले 10 वर्षों में सपा के जमीनी कार्यकर्ताओं के जुझारूपन पर भारी दिखने वाली भाजपा के पन्ना प्रमुखों की सुस्ती से हैरत की स्थिति है। सत्ता के शिखर पर विराजमान भाजपा से प्रत्याशी घोषित होने के बाद भी मौजूदा सांसद प्रवीण निषाद के प्रति शुरुआती दौर में दिख रहा आक्रोश आज के दिनो भले ही कुछ शांत नजर आ रहा हो लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं की उदासीनता पार्टी के लिए आज भी चिंता का सबब बनी हुई है।
मेहदवाल छोड़ जिले के अन्य विधानसभा के सत्ताधारी विधायकों की सुस्ती के बीच नवेले भगवाधारी पूर्व विधायक जय चौबे का सियासी जादू भी अभी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं पर असर नहीं डाल पा रहा है। इसके लिए मौजूदा सांसद एवम् भाजपा प्रत्याशी की पिछले पांच सालों का क्रियाकलाप सब कुछ पर भारी नजर आ रहा है। मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं में भी कमोवेश यही हालात देखने को मिल रहे हैं। 2017 में मंत्री पद जाने के बाद सपा प्रत्याशी लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद की जमीनी स्तर पर दिखी निष्क्रियता का असर इस चुनावी संग्राम में साफ नजर आ रहा है। मीडिया में चिल्ला चिल्ला कर पार्टी की जीत सुनिश्चित होने का दावा करने वाले पार्टी के तमाम नेतागण भी जमीनी कार्यकर्ताओं में उत्साह पैदा करते नही दिख रहे हैं।
ऐसे ही कुछ हालत बसपा प्रत्याशी के चुनाव को भी लेकर देखने को मिल रहा है। हालांकि बसपा कार्यकर्ताओं में प्रत्याशी की जगह सिंबल को तरजीह देने की पुरानी परंपरा रही है लेकिन पार्टी के तत्कालीन घोषित प्रत्याशी की कोई पुरानी सियासी जमीन नही होने से यहां भी चुनाव प्रचार को लेकर उदासीनता ही नजर आ रही है। प्रदेश में पिछले दो चरणों में संपन्न हुए चुनाव में मतदान के घटे प्रतिशत का सिलसिला अगर संतकबीरनगर लोकसभा में भी जारी रहा तो फिर चुनावी परिणाम की संभावित तस्वीर का अनुमान वरिष्ठ राजनैतिक समीक्षकों के लिए भी किसी पहेली से कम नहीं होगा।